श्री नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ एक अत्यंत प्राचीन तीर्थ स्थल है जो राजस्थान राज्य में बाडमेर के नाकोडा ग्राम में स्थित है। भारत में रामायण और महाभारत काल तक तीर्थ स्थलों की प्राप्ति हो चुकी थी। इन दो महाकाव्यों में तीर्थ शब्द का अनेक बार उल्लेख आया है। नाकोडा तीर्थ स्थल प्रमुख दो कारणों से विख्यात है-
श्वेताम्बर जैन समाज के तेईसवें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ की दसवीं शताब्दी की प्राचीनतम मूर्ति का मिलना और पांच सौ छह सौ वर्षो पूर्व उस चमत्कारी मूर्ति का जिनालय में स्थापित होना। मुख्य मंदिर की भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा चूंकि सिन्दरी के पास नाकोडा ग्राम से आई थी, अतः यह तीर्थ नाकोडा पार्श्वनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यह क्षेत्र लगभग दो हज़ार वर्ष से जैन आध्यात्मिक गतिविधियों का केंद्र रहा है। यहाँ के खेडपटन और मेवानगर अथवा विरामपुर इस संदर्भ में जैन ऐतिहासिक परम्पराओं से जुड़े रहे हैं।
तीर्थ के अधियक देव श्री भैरव देव की स्थापना पार्श्वनाथ मंदिर के परिसर में होना है, जिनके देवी चमत्कारों के कारण हज़ारों लोग प्रतिवर्ष श्री नाकोडा भैरव के दर्शन करने यहाँ आते है और मनवांछित फल पाते हैं।
किदवंतियों के आधार पर श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ का प्राचीनतम उल्लेख महाभारत काल यानि भगवान श्री नेमिनाथ जी के समयकाल से जुड़ता है किन्तु आधारभूत ऐतिहासिक प्रमाण से इसकी प्राचीनता विक्रम संवत 200-300 वर्ष पूर्व यानि 2000-2300 वर्ष पूर्व की मानी जा सकती है। अतः श्री नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ राजस्थान के उन प्राचीन जैन तीर्थो में से एक है, जो 2000 वर्ष से भी अधिक समय से इस क्षेत्र की खेड़पटन एवं मेवानगर की ऐतिहासिक सम्रद्ध, संस्कृतिक धरोहर का श्रेष्ठ प्रतीक है। मेवानगर के पूर्व में विरामपुर नगर के नाम से प्रसिद्ध था। विरामसेन ने विरामपुर तथा नाकोरसेन ने नाकोडा नगर बसाया था। आज भी बालोतरा- सीणधरी हाईवे पर नाकोडा ग्राम लूनी नदी के तट पर बसा हुआ है, जिसके पास से ही इस तीर्थ के मूल नायक भगवन की इस प्रतिमा की पुनः प्रति तीर्थ के संस्थापक आचार्य श्री किर्ति रत्न सुरिजी द्वारा विक्रम संवत 1090 व 1205 का उल्लेख है।
श्री नाकोडा अधियक भैरव देव जी की स्थापना विक्रम संवत 1502 में आचार्य श्री किर्तिरत्न सूरि जी ने नाकोडा पार्श्वनाथ प्रभु की प्रति के समय की थी। अत्यंत मनमोहक पीले पाषाण की महान विलक्षण प्रतिमा स्थापित है, जिसे श्री नाकोडा भैरव कहा जाता है। समीप ही श्री नाकोडा बाँध पर भैरव के दूसरे रूप की प्रतिमा भी स्थापित है, जिसे कालिया भैरव के नाम से जाना जाता है।
तीर्थ के अधिनायक देव श्री भैरव देव की मूल मंदिर में अत्यंत चमत्कारी प्रतिमा है, जिसके प्रभाव से देश के कोने कोने से लाखों यात्री प्रतिवर्ष यहाँ दर्शनार्थ आकर स्वयं को कृतकृत्य अनुभव करते है। वैसे तीनों मंदिर वास्तुकला के अद्भुत नमूने है। चौमुखजी कांच का मंदिर, महावीर स्मृति भवन, शांतिनाथ जी के मंदिर में तीर्थंकरों के पूर्व भवों के पट्ट भी अत्यंत कलात्मक व दर्शनीय है।
उत्थान एवं पतन
तीर्थ ने अनेक बार उत्थान एवं पतन को आत्मसात किया है। विधर्मियों की विध्वंसात्मक- वृत्ति में विक्रम संवत 1500 के पूर्व इस क्षेत्र के कई स्थानों को नष्ट किया है, जिसका दुष्प्रभाव यहाँ पर भी हुआ। लेकिन संवत 1502 की प्रति के पश्चात पुन: यहाँ प्रगति का प्रारम्भ हुआ और वर्तमान में तीनों मंदिरों का परिवर्तित व परिवर्धित रूप इसी काल से सम्बंधित है। संवत 1959 - 60 में साध्वी प्रवर्तिनी श्री सुन्दर जी ने इस तीर्थ के पुन: उद्धार का काम प्रारंभ कराया और गुरु भ्राता आचार्य श्री हिमाचल सूरीजी भी उनके साथ जुड़ गये। इनके अथक प्रयासों से आज ये तीर्थ विकास के पथ पर निरंतर आगे बढ़ता रहा है। मूल नायक श्री नाकोडा पार्श्वनाथ जी के मुख्य मंदिर के अलावा प्रथम तीर्थंकर परमात्मा श्री आदिनाथ प्रभु एवं तीसरा मंदिर सोलवें तीर्थंकर परमात्मा श्री शांतिनाथ प्रभु का है। इसके अतिरिक्त अनेक देवालय, ददावाडियाँ एवं गुरुमंदिर है जो मूर्तिपूजक परंपरा के सभी गछों को एक संगठित रूप से संयोजे हुए है।
यह तीर्थ जोधपुर से 116 किमी तथा बालोतरा से 12 किमी (उत्तरी रेलवे स्टेशन) जोधपुर बाड़मेर मुख्य रेल मार्ग पर स्थित है।
तीर्थ स्थान प्राय: सभी केंद्र स्थानों से पक्की सड़क द्वारा जुड़ा हुआ है।
श्री नाकोडा तीर्थ ट्रस्ट यात्रियों के लिए निवास, भोजन, पुस्तकालय, औषधालय आदि की सभी प्रकार की व्यवस्था सहर्ष करता है।
गर्मी (चैत्र सुदी एकम से कार्तिक वदी अमावस तक)
प्रातः : 5:30 बजे से रात्रि 10:00 बजे तक
सर्दी (कार्तिक सुदी एकम से चैत्र वदी अमावस तक)
प्रातः : 6:00 बजे से रात्रि : 9:30 बजे तक विशेष
पहला कारण
श्वेताम्बर जैन समाज के तेईसवें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ की दसवीं शताब्दी की प्राचीनतम मूर्ति का मिलना और पांच सौ छह सौ वर्षो पूर्व उस चमत्कारी मूर्ति का जिनालय में स्थापित होना। मुख्य मंदिर की भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा चूंकि सिन्दरी के पास नाकोडा ग्राम से आई थी, अतः यह तीर्थ नाकोडा पार्श्वनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यह क्षेत्र लगभग दो हज़ार वर्ष से जैन आध्यात्मिक गतिविधियों का केंद्र रहा है। यहाँ के खेडपटन और मेवानगर अथवा विरामपुर इस संदर्भ में जैन ऐतिहासिक परम्पराओं से जुड़े रहे हैं।
दूसरा कारण
तीर्थ के अधियक देव श्री भैरव देव की स्थापना पार्श्वनाथ मंदिर के परिसर में होना है, जिनके देवी चमत्कारों के कारण हज़ारों लोग प्रतिवर्ष श्री नाकोडा भैरव के दर्शन करने यहाँ आते है और मनवांछित फल पाते हैं।
इतिहास
किदवंतियों के आधार पर श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ का प्राचीनतम उल्लेख महाभारत काल यानि भगवान श्री नेमिनाथ जी के समयकाल से जुड़ता है किन्तु आधारभूत ऐतिहासिक प्रमाण से इसकी प्राचीनता विक्रम संवत 200-300 वर्ष पूर्व यानि 2000-2300 वर्ष पूर्व की मानी जा सकती है। अतः श्री नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ राजस्थान के उन प्राचीन जैन तीर्थो में से एक है, जो 2000 वर्ष से भी अधिक समय से इस क्षेत्र की खेड़पटन एवं मेवानगर की ऐतिहासिक सम्रद्ध, संस्कृतिक धरोहर का श्रेष्ठ प्रतीक है। मेवानगर के पूर्व में विरामपुर नगर के नाम से प्रसिद्ध था। विरामसेन ने विरामपुर तथा नाकोरसेन ने नाकोडा नगर बसाया था। आज भी बालोतरा- सीणधरी हाईवे पर नाकोडा ग्राम लूनी नदी के तट पर बसा हुआ है, जिसके पास से ही इस तीर्थ के मूल नायक भगवन की इस प्रतिमा की पुनः प्रति तीर्थ के संस्थापक आचार्य श्री किर्ति रत्न सुरिजी द्वारा विक्रम संवत 1090 व 1205 का उल्लेख है।
भैरव देवजी की स्थापना
श्री नाकोडा अधियक भैरव देव जी की स्थापना विक्रम संवत 1502 में आचार्य श्री किर्तिरत्न सूरि जी ने नाकोडा पार्श्वनाथ प्रभु की प्रति के समय की थी। अत्यंत मनमोहक पीले पाषाण की महान विलक्षण प्रतिमा स्थापित है, जिसे श्री नाकोडा भैरव कहा जाता है। समीप ही श्री नाकोडा बाँध पर भैरव के दूसरे रूप की प्रतिमा भी स्थापित है, जिसे कालिया भैरव के नाम से जाना जाता है।
नाकोडा पार्श्वनाथ जी की अराधना
तीर्थ के अधिनायक देव श्री भैरव देव की मूल मंदिर में अत्यंत चमत्कारी प्रतिमा है, जिसके प्रभाव से देश के कोने कोने से लाखों यात्री प्रतिवर्ष यहाँ दर्शनार्थ आकर स्वयं को कृतकृत्य अनुभव करते है। वैसे तीनों मंदिर वास्तुकला के अद्भुत नमूने है। चौमुखजी कांच का मंदिर, महावीर स्मृति भवन, शांतिनाथ जी के मंदिर में तीर्थंकरों के पूर्व भवों के पट्ट भी अत्यंत कलात्मक व दर्शनीय है।
उत्थान एवं पतन
तीर्थ ने अनेक बार उत्थान एवं पतन को आत्मसात किया है। विधर्मियों की विध्वंसात्मक- वृत्ति में विक्रम संवत 1500 के पूर्व इस क्षेत्र के कई स्थानों को नष्ट किया है, जिसका दुष्प्रभाव यहाँ पर भी हुआ। लेकिन संवत 1502 की प्रति के पश्चात पुन: यहाँ प्रगति का प्रारम्भ हुआ और वर्तमान में तीनों मंदिरों का परिवर्तित व परिवर्धित रूप इसी काल से सम्बंधित है। संवत 1959 - 60 में साध्वी प्रवर्तिनी श्री सुन्दर जी ने इस तीर्थ के पुन: उद्धार का काम प्रारंभ कराया और गुरु भ्राता आचार्य श्री हिमाचल सूरीजी भी उनके साथ जुड़ गये। इनके अथक प्रयासों से आज ये तीर्थ विकास के पथ पर निरंतर आगे बढ़ता रहा है। मूल नायक श्री नाकोडा पार्श्वनाथ जी के मुख्य मंदिर के अलावा प्रथम तीर्थंकर परमात्मा श्री आदिनाथ प्रभु एवं तीसरा मंदिर सोलवें तीर्थंकर परमात्मा श्री शांतिनाथ प्रभु का है। इसके अतिरिक्त अनेक देवालय, ददावाडियाँ एवं गुरुमंदिर है जो मूर्तिपूजक परंपरा के सभी गछों को एक संगठित रूप से संयोजे हुए है।
कैसे पहुँचे
यह तीर्थ जोधपुर से 116 किमी तथा बालोतरा से 12 किमी (उत्तरी रेलवे स्टेशन) जोधपुर बाड़मेर मुख्य रेल मार्ग पर स्थित है।
तीर्थ स्थान प्राय: सभी केंद्र स्थानों से पक्की सड़क द्वारा जुड़ा हुआ है।
श्री नाकोडा तीर्थ ट्रस्ट यात्रियों के लिए निवास, भोजन, पुस्तकालय, औषधालय आदि की सभी प्रकार की व्यवस्था सहर्ष करता है।
मंदिर के खुलने का समय
गर्मी (चैत्र सुदी एकम से कार्तिक वदी अमावस तक)
प्रातः : 5:30 बजे से रात्रि 10:00 बजे तक
सर्दी (कार्तिक सुदी एकम से चैत्र वदी अमावस तक)
प्रातः : 6:00 बजे से रात्रि : 9:30 बजे तक विशेष
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